पच्चीस साल में भी धरालत पर नहीं उतरी राज्य आंदोलन की अवधारणा: यशपाल

गैरसैंण पर चल रही है राजनीति, 12 सौ गांव विरान, 4 हजार स्कूल बंद, अब पालीटेक्निक और आईटीआई की बारी
हल्द्वानी। राज्य स्थापना दिवस की पच्चीसवीं सालगिरह की पूर्व संध्या पर नेता प्रतिपक्ष ने आंदोलनकारियों का सपना अधूरा रहने परंिचता जतायी है।

उन्होंने राज्यवसियों को राज्य स्थापना दिवस की शुभकामना दी है और कहा कि जिस उत्तराखंड का सपना राज्य आंदोलनकारियों ने देखा था, वह आज तक पूरा नहीं हो पाया है। उत्तराखंड राज्य गठन के पीछे ढाई सदियों का संघर्ष है। कई राज्य आंदोलकारियों की शहादत है, जिसके बदौलत आज उत्तराखंड अपने अस्तित्व में आया है, लेकिन अभी भी उनके सपनों का उत्तराखंड अधूरा है। राज्य की मूल अवधारणा के प्रश्न हमारे सामने आज भी वैसे ही खड़े हैं।

शुक्रवार देर सांय यहां जारी एक लिखित बयान में आर्य ने कहा कि उत्तराखंड में लगातार उत्पादकता घट रही है और बढ़ रहे खर्च के बदौलत आज प्रदेश लगातार कर्ज में डूबता जा रहा है। जिसका सरकार अभी तक स्थाई समाधान नहीं ढूंढ पाई है। आज यह स्थिति है कि हर महीने सरकार को 200 से 300 करोड़ रुपये तक का ऋण बाजार से उठाना पड़ता है।

राज्य बनते समय हम बात करते थे कि हमारी आर्थिकी का आधार पर्यटन, उद्यान और जल विद्युत परियोजनाऐं होंगी। आज हम इन तीनों ही क्षेत्रों में लक्ष्य से बहुत दूर हैं। राज्य के स्थानीय निवासियों की इन तीनों महत्वपूर्ण क्षेत्रों में हिस्सेदारी लगातार घट रही है। हमारी संस्थाएं विशेष तौर पर हमारी विविद्यालयी संस्थाएं उनके शैक्षिक व अनुसंधानिक स्तर में जो गिरावट आई है वह चिंतनीय है।

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में महिलाओं की स्थिति बेहद चिंताजनक भी बनी है। उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में पढ़ी-लिखी ग्रेजुएट बेटियां घास काटते और गांव में घर का काम करते नजर आती हैं। इसका मूल कारण महिलाओं के रोजगार को लेकर सरकार ने कोई बड़े कदम नहीं उठाए।  आर्य ने कहा कि पहाड़ी इलाकों से पलायन राज्य का एक बड़ा नासूर बन चुका है। सरकार पलायन पर नकेल लगाने में नाकाम साबित हुई है। पलायन को लेकर राज्य में हालात इतने बदतर होते जा रहे हैं कि कई गांव अब घोस्ट विलेज बन चुके हैं।

नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि भाजपा सरकार की गैरसैण, ग्रीष्मकालीन राजधानी केवल घोषणा और नाम तक ही सीमित रह गई है। पर्वतीय जिले मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं।

पिछले ढाई दशक में 1200 से अधिक गांव वीरान हो चुके हैं। 4000 स्कूल बंद हो चुके हैं। सरकार अब पर्वतीय क्षेत्रों में पालीटेक्निक  औरआइटीआई  भी बंद करने जा रही है। स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में रोजाना कई लोग दम तोड़ रहे हैं।

आर्य ने कहा कि रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता के लिए पृथक राज्य की मांग की गई थी, पर स्थिति यह है कि राज्य का युवा रोजगार की मांग को लेकर सड़कों पर उतरा हुआ है। प्रदेश में रोजगार की पूरी व्यवस्था ठेकेदारों के अधीन है।

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में सरकारी सेवाएं ही रोजगार का सबसे बड़ा आधार रही । प्रदेश में 15 लाख पंजीकृत बेरोजगार हैं और लगभग इसी संख्या से ज्यादा अपंजीकृत बेरोजगार राज्य मे दर-दर रोजगार के लिए भटक रहा हैं।

लगभग 1 लाख के करीब पद रिक्त  हैं। उत्तराखंड सरकारी महकमों, निगमों व सहायतित संस्थाओं में विभिन्न श्रेणियों के 82 हजार से अधिक पद खाली हैं। इनमें सबसे अधिक समूह ग के 41 हजार 842 पद खाली हैं, जबकि समूह घ के 9 हजार 591 पद भी रिक्त चल रहे हैं।

समूह क और ख श्रेणी के 8 हजार 266 पद भी खाली हैं। इसी तरह सार्वजनिक संस्थाओं में भी विभिन्न श्रेणियों के कुल 14019 पद खाली चल रहे हैं। सहायतित संस्थाओं में भी स्थायी व अस्थायी वर्ग में समूह क, ख, ग व घ श्रेणी के 8 हजार 798 पद खाली चल रहे हैं।

इनमें से सबसे अधिक पदों को भरने के लिए उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की जिम्मेदारी थी लेकिन आयोग द्वारा आयोजित हर परीक्षा विवादों में रही है , बेरोजगारों ने इसके सबूत सार्वजनिक किए। परीक्षाओं को लेकर जो गड़बड़ियां सामने आई हैं उसमें पब्लिक सर्विस कमीशन से लेकर अधीनस्थ सेवा चयन आयोग और दूसरी संस्थाएं, राज्य की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाई हैं। राजकीय सेवाओं में भर्तियों को लेकर जो एक चिंतनीय स्थिति बनी हुई है वह हमको झगझोरती है।

उन्होंने कहा कि  एक सख्त भू कानून और मूल निवास लागू करने की आवश्यकता है और यह भू-कानून पूरे प्रदेश की 100 प्रतिशत भूमि के लिए लागू होना चाहिए। पर्वतीय जिलों में सबसे बड़ी समस्या गुणवत्ता वाले स्कूलों की है और रोजगार सृजन के अवसरों के लिए राज्य स्तरीय कौशल निर्माण वििद्यालय की स्थापना की मांग अरसे हो रही है। राज्य सरकार का इस ओर कोई ध्यान नहीं है।

उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में मूलत: गांव ही विकास और लोगों की बसाहट की मूल इकाई हैं। गांवों की खुशहाली मजबूत करनी होगी जिससे पलायन रुके और स्थानीय लोगों को छोटे मोटे रोजगार की तलाश में गांव से पलायन न करना पड़े। उन्होंने कहा कि राज्य की भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों के अनुसार नीतियां बनाने और यहां के निवासियों की आकांक्षाओं के अनुसार उन नीतियों को जमीन पर उतारने के लिए काम करने की जरुरत है।

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