पिछडी जाति के फर्जी प्रमाण पत्र पर पाई थी नौकरी
देहरादून। सामान्य जाति का होते हुए पिछड़ी जाति का फर्जी प्रमाणपत्र इस्तेमाल कर आईआईटी रुड़की में नौकरी पाने वाले आईआईटी रुड़की के पूर्व सहायक प्रोफेसर को सीबीआई कोर्ट ने तीन साल की सजा सुनाई। दोषी पर अदालत ने दस हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है।
मामले की जानकारी देते हुए सीबीआई अधिवक्ता अमिता वर्मा ने बताया कि 29 सितंबर 2014 को आईआईटी रुड़की में असिस्टेंट प्रोफेसर रहे विकास के खिलाफ 27 फरवरी 2015 को मुकदमा दर्ज हुआ था। सुनवाई के दौरान 19 गवाह कोर्ट में पेश किए गए। उन्होने बताया कि आरोपित ने पिछले दिनों स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी।
सीबीआई के अनुसार डॉक्टर विकास पंजाबी क्षत्रिय परिवार से हैं। परन्तु 15 फरवरी 2000 को आईआईटी में उन्होने पिछड़ी जाति कोटे से लेक्चरर के पद पर नौकरी मिली। दो साल बाद उन्होने असिस्टेंट प्रोफेसर के पद के लिए आवेदन किया और खुद को फिर एससी बताया। जिसके बाद वे असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हो गए। दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने माना कि आरोपित विकास ने सामान्य परिवार से होने के बाद भी पिछड़ी जाति के प्रमाण पत्र पर नौकरी हासिल की। आरोप सही पाए जाने पर अदालत ने दोषी को 3 साल कैद और 10 हजार रूपए के जुर्माने की सजा सुनाई।