देहरादून। उत्तराखंड में लगातार दो विधानसभा चुनाव हारने और तीन लोकसभा चुनावों में एक भी सीट ना जीतने वाली कांग्रेस के लिए 2027 का विधानसभा चुनाव करो या मरो वाला है।
जानकर कहते हैं कि पार्टी ने आउटगोइंग अध्यक्ष करण मेहरा को रिप्लेस करके ये संदेश देने की कोशिश की है कि पार्टी नया नेतृत्व और नए एक्सपेरिमेंट की हिमायती है। कांग्रेस आलाकमान से उत्तराखण्ड कांग्रेस में बदलाव करते हुए प्रदेश अध्यक्ष पद की कमान दोबारा गणेश गोदियाल को सौंपी है।
चुनाव मैनेजमैंट पूर्व मंत्री डॉ हरक सिंह रावत को और पूर्व काबीना मंत्री प्रीतम सिंह को चुनाव प्रचार प्रमुख बनाया गया है। स अब आगामी विधानसभा चुनाव में देखने वाली बात होगी कि कांग्रेस आलाकमान का यह फार्रमूला आगामी विधानसभा चुनाव में कितना कारगर साबित होगा।
उत्तराखंड की राजनीति में मुख्य रूव से कांग्रेस और बीजेपी दो बड़ी पार्टियां रही हैं। जो हर चुनाव में आमने सामने रहती हैं। साथ ही कुमाऊं, गढ़वाल और तराई के बीच क्षेत्रिय बैलेंस बनाती आई हैं। लेकिन इस बार कांग्रेस ने इस रीजनल फॉर्मूले को किनारे किया है। इसकी दो वजह मानी जा रही हैं।
पहली ये है कि जब 2016 में हरीश रावत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में बगावत हुई थी तो उसके सूत्रधार तब मंत्री रहे हरक सिंह रावत रहे थे। उन बगावत के बाद कांग्रेस की गढ़वाल में राजनीतिक तौर पर जो हालत हुई, वो आज तक नहीं संभल पाई। हरिद्वार जिले को छोड़कर बाकी गढ़वाल मंडल के पहाड़ी जिलों से कांग्रेस के सिर्फ तीन विधायक हैं। देहरादून जिले से प्रीतम सिंह, टिहरी जिले से विक्रम सिंह और बाई इलेक्शन में चमोली जिले से जीते लखपत बुटोला।
नए रिशफल में गणेश गोदियाल, प्रीतम सिंह और हरक सिंह रावत प्रमुख चेहरे हैं और तीनों ही गढ़वाल मंडल की राजनीति में खासे सक्रिय हैं। पार्टी अध्यक्ष रहे प्रीतम सिंह इकलौते नेता हैं जो हालिया पंचायत चुनाव में देहरादून जिले में कांग्रेस को जीत दिलवा पाए। वहीं गोदियाल ने लगातार आक्रामक छवि बनाई है।
दूसरी तरह चुनाव के लिए मैनेजमेंट की जिम्मेदारी हरक सिंह को दी गई है। कांग्रेस की राजनीति के लिहाज से ये बड़ा कदम है, क्योंकि एक समय ऐसा था जब कांग्रेस आलाकमान हरक सिंह को लेकर अनमना था।
पूर्व मंत्री रहे, एक प्रमुख कांग्रेस नेता ने अनौपचारिक बातचीत में कहा कि हरक सिंह बेशक भरोसे तोड़ने के लिए कुख्यात हों पर उनका तजुर्बा मौजूदा नेताओं में बढ़िया है।
दिलचस्प पहलू ये भी है कि कांग्रेस में पूर्व सीएम हरीश रावत बेशक किसी भूमिका में नहीं आ पाए हों, लेकिन उत्तराखंड की राजनीति में उनका कद छोटा नहीं है। जहां कुछ नेता हरीश रावत के रोल को दरकिनार करने को ठीक मानते हैं, वहीं एक वर्ग ऐसा है जो कहता है रावत बेशक उम्रदराज हों पर वो चूके नहीं हैं। पार्टी आलाकमान को उन्हें कम आंकने की गलती नहीं करनी चाहिए।
कांग्रेस ने नए नेतृत्व के साथ ही 27 जिला अध्यक्षों का भी मनोनयन किया है। उस लिस्ट में हरीश रावत और करण मेहरा समर्थकों को भी जगह दी गई है। संभवत इस लिस्ट के बहाने संदेश दिया गया है कि सबको जगह मिलेगी. लेकिन कांग्रेस की राजनीति इतनी सपाट नहीं है और गणेश गोदियाल के लिए यही सबसे बड़ा चौलेंज होगा कि वो राजनीति की रपटिली राहों में सभी गुटों को साथ कैसे रख पाते हैं।
