देहरादून। मौसम का बिगड़ा मिजाज न सिर्फ चारधाम यात्रा की तैयारियों में रास्ते का रोड़ा बन चुका है अपितु किसानों के लिए अभिशाप साबित हो रहा है। खास बात यह है कि अभी जल्द इस मौसम में किसी तरह के सुधार की संभावनाएं नजर नहीं आ रही है जो एक गंभीर चिंता का विषय है।
होली के बाद से ही मौसम का मिजाज इस कदर बिगड़ा है कि आम आदमी यह सोचने पर विवश है कि यह ग्रीष्म काल है या बारिश का सीजन। मार्च माह में लोगों ने शायद इस तरह का मौसम इससे पहले कभी नहीं देखा है। बारिश ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले हैं।
राज्य के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पारा शून्य से भी नीचे पहुंच गया है, वहीं मैदानी क्षेत्रों में बारिश और ओलावृष्टि के कारण पारा सामान्य से 10 से 15 सेंटीग्रेड नीचे लुढ़क चुका है। लोगों ने फिर से गर्म कपड़े निकाल लिए हैं। मौसम विभाग द्वारा जारी किए गए मौसम के ताजा अपडेट के अनुसार अभी राज्य में कुछ दिन ऐसा ही मौसम रहने की बात कही गई है।
बीती रात से राजधानी दून, मसूरी, नैनीताल, हरिद्वार और आसपास के क्षेत्रों में झमाझम बारिश हो रही है वहीं उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग और चमोली सहित तमाम ऊंचाई वाले जिलों में बारिश और बर्फबारी हो रही है। केदारघाटी में हो रही बर्फबारी के कारण तापमान शुन्य से नीचे जा चुका है। यहां यात्रा की तैयारियों में जुटे मजदूरों को काम करने में भारी दिक्कतें हो रही है। पैदल मार्ग से बर्फ हटाने का जो काम लगभग पूरा किया जा चुका था वह सब कुछ ताजा बर्फबारी और ग्लेशियर टूटने के कारण चैपट हो चुका है। 12 किलोमीटर लंबे पैदल मार्ग पर फिर बर्फ की मोटी चादर बिछ गई है जिसे हटाने का काम बर्फबारी के बीच भी जारी है।
भले ही प्रशासन द्वारा दावा किया जा रहा हो कि समय पर काम पूरा कर लिया जाएगा लेकिन मौसम का मिजाज अगर नहीं बदला तो क्या होगा? जबकि चारधाम यात्रा को शुरू होने में अब महज 20कृ25 दिन का ही समय शेष बचा है। यही नहीं वर्षा व बर्फबारी के कारण सड़कों की मरम्मत का काम भी नहीं हो पा रहा है। खासतौर पर बदरीनाथ हाईवे पर कई स्थानों पर सड़क की स्थिति अत्यंत ही खराब है। शासन प्रशासन के सामने सिर्फ रास्तों को ठीक करने की चुनौती नहीं है धामों में यात्रियों के खाने पीने की व्यवस्था के साथ अन्य यात्री सुविधाओं को बहाल करने की भी चुनौती है।
इस बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से अब तक किसानों की तैयार फसलों को 40 से 50 फीसदी तक का नुकसान हो चुका है। सिर्फ मैदानी भागों में ही नहीं पहाड़ी जिलों में भी फलकृसब्जी की फसलें चैपट हो चुकी हैं। भले ही सरकार द्वारा इसके सर्वे कराने और किसानों को हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति की बात कही जा रही हो लेकिन किसानों को हुए भारी नुकसान की भरपाई संभव नहीं है।