समिति के नाम पर जनता का ध्यान भटकाने की कोशिश : यशपाल आर्य

हल्द्वानी। नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा कि भू-कानून में सुधार के लिए बनाई गई उच्च अधिकार प्राप्त समिति की संस्तुतियों से कोई नादान व्यक्ति भी निष्कर्ष निकाल सकता है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार उच्च अधिकार प्राप्त समिति के गठन के समय से लेकर रिपोर्ट पेश करने तक समिति के नाम पर जनता और मीडिया का ध्यान प्रदेश के ज्वलंत मुद्दों से भटकाने की कोशिश कर रही है।

उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार ने पिछले चार सालों से विभिन्न प्रयोजनों के लिए जमीन खरीदने की अनुमति देकर अपने खास लोगों को उत्तराखंड की बहुमूल्य भूमि की नीलामी की है। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड में जमीन की खुली नीलामी की छूट की संभावना और भूमि का अनियंत्रित क्रय-विक्रय, छह दिसंबर 2018 के बाद तब शुरू हुआ था, जब पिछली भाजपा सरकार उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश) जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 की धारा 143 (क) और 154 (2) में संशोधन कर उत्तराखंड में औद्योगिकीकरण (उद्योग, पर्यटन, शिक्षा, स्वास्थ्य ) कृषि और उद्यानिकी के नाम पर किसी को भी, कहीं भी, कितनी ही मात्रा में जमीन खरीदने की छूट दे दी थी। उन्होंने दावा किया कि इन नियमों में बदलाव करने के बाद पिछले चार सालों में भाजपा सरकार ने अपने चहेते उद्योगपतियों, धार्मिक और सामाजिक संगठनों को अरबों की जमीनें खरीदने की अनुमति दी है।

उन्होंने कहा कि उच्च अधिकार प्राप्त समिति ने सभी जिलाधिकारियों से जिलेवार विभिन्न उद्योगपतियों, सामाजिक, धार्मिक और शैक्षणिक संस्थाओं को भूमि खरीदने की स्वीकृतियों का ब्योरा भी मांगा था। उन्होंने कहा कि राज्य की जनता को भी यह जानने का हक है कि 6 दिसंबर 2018 को उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश) जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 की दो धाराओं में परिवर्तन के बाद उनकी सरकार या अधिकारियों ने किस- किस को कितनी जमीन खरीदने की अनुमति प्रदान की है। उन्होंने कहा कि पारदर्शिता का दावा करने वाली सरकार को इस बीच अपने चहेतों को दी गई राज्य की बहुमूल्य भूमि का विवरण देना चाहिए। उन्होंने बताया कि समिति ने भूमि खरीदने की अनुमति देने के माध्यम को बदलकर मासूम जनता की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश की है।

उन्होंने कहा है कि सरकार द्वारा गठित उच्च अधिकार प्राप्त समिति जो स्वयं स्वीकार कर रही है कि जमीन खरीदने की अनुमतियों का दुरुपयोग हुआ है तो उन जमीनों को कानूनन राज्य सरकार में निहित किया जाना चाहिए था।

उन्होंने कहा कि सरकार को विभिन्न जिलों और मुख्यत: चारधाम और धार्मिक महत्व के जिलों में धार्मिक प्रयोजन के लिए विभिन्न धर्मो और संप्रदायों द्वारा अनुमति के बाद ली गयी भूमि का ब्योरा भी समिति ने मंगवाया था, सरकार को यह भी सार्वजनिक करना चाहिए कि उसके अधिकारियों ने किस-किस धर्म और संप्रदाय को किन जगहों पर धार्मिक कायरे के लिए जमीन खरीदने की अनुमति दी है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में 60-65 सालों से भू-बन्दोबस्त नहीं हुआ है। समिति ने इसकी संस्तुति की है और सरकार को इस संस्तुति को मानते हुए शीघ्र भूमि बंदोबस्त की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए।

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