15 किलोमीटर की पैदल यात्रा में होते हैं दर्जनोंमंदिरों के दर्शन
उत्तरकाशी। विशेष धार्मिक और पौराणिक महत्व वाली इस यात्रा की विशेषता यहां है कि यात्रा में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं को जहां एक साथ ही 33 करोड़ देवी देवताओं के दर्शन हो जाते है, वहीं अमेघ यज्ञ जैसे फल की प्राप्ति भी होती है।
प्रसिद्ध वारूण पंचकोसी यात्रा हर वर्ष चैत्र माह में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन होती है। पंद्रह किलोमीटर लंबे इस यात्रा मार्ग पर व्यास कुंड गौतम गंगा, तपलिनी ऋषि की गुफा और दर्जनों देवी देवताओं के मंदिर विराजमान हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार हर वर्ष चैत्र माह की त्रयोदशी को वारुणी यात्रा का दिन होता है। पंचकोसी यात्रा में शामिल होने के लिए श्रद्धालु प्रात: मणिकर्णिका घाट के साथ ही तीन किमी दूर भागीरथी और वरुणा के बडेथी स्थित संगम पर स्नान कर गंगाजल और पूजा सामग्री लेकर यात्रा शुरू करते हैं। गंगा स्नान करने के बाद श्रद्धालु सीढ़ीनुमा रास्तों से होते हुए सर्व प्रथम बंसुगा के ज्ञान मंदिर पहुंचते हैं।
मंदिर में पूजा अर्चना के बाद श्रद्धालु गमदिड़गांव में जगन्नाथ मंदिर के दर्शन होते हैं। इसके बाद साल्ड गांव में अष्टभुजा माता मंदिर में पूजा होती है। ज्ञाणजा गांव में ज्ञानेवर महाराज मंदिर के दर्शन के बाद श्रद्धालु व्यास कुंड, शिखरेवर, विमलेवर महादेव मंदिर में दर्शन करते हैं। संगाल्री गांव में यात्री कंडार देवता मंदिर के मंदिर पहुंचते हैं। जहां पर पूजा-अर्चना और प्रसाद ग्रहण करने के बाद असी गंगा और भागीरथी के संगम की ओर उतरते हैं। 15 किमी लंबी वारूणी यात्रा के दौरान श्रद्धालु वरूणावत पर्वत की परिक्रमा कर 33 करोड़ देवी देवताओं के दर्शन कर पुण्य कमाते है। यात्रा के दिन स्थानीय लोग यात्रा रूट के पैदल मार्ग पर जगह-जगह यात्रियों के लिये जलपान की व्यवस्था करते है।
बडेथी ज्ञानसू से शुरू होती यह यात्रा जब संगाल्री स्थित कंडार देवता मंदिर के दर्शन के लिये गंगोरी की तरफ रूख करती है तो सभी यात्री अस्सी गंगा व भागीरथी नदी के गंगोरी स्थित संगम पर स्नान कर लक्षेर मंदिर होते हुए नगर के बीचों बीच स्थित काशी विनाथ मंदिर पहुंचते हैं और दर्शन करने के बाद अपने गंतव्य को पहुंचकर पंचकोसी यात्रा को पूरी करते हैं।
धार्मिक मान्यता है कि जो भी लोग वारूणी यात्रा में शरीक होते है उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है। यात्रा में हर वर्ष स्थानीय लोगों के साथ ही बाहरी जिलों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धाुल शामिल होते है। पंडित सुरेश शास्त्री का कहना है कि यह यात्रा अनंत काल से होती आ रही है। इस यात्रा में सिद्ध मंदिरों के दर्शन और उनकी परिक्रमा होती है। पुराणों के अनुसार इस यात्रा का एक पग यज्ञ के समान है। वारूणी यात्रा करने से तीन करोड़ तीर्थों के एक साथ दर्शन हो जाते है। वारूणी यात्रा में जो लोग शामिल होते है उन सभी मनोकामना भी पूर्ण हो जाती है।