आज आ सकता है ऐतिहासिक फैसला,वरिष्ठ अधिवक्ता देवीदत्त कामथ की टीम कर रही है पैरवी
नैनीताल। नैनीताल उच्च न्यायालय ने विस सचिवालय से बर्खास्त कर्मचारियों की सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी। सुनवाई न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की एकलपीठ में चल रही है। बर्खास्त कर्मचारियों को ओर से सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता देवीदत्त कामथ, पूर्व महाधिवक्ता वीवीएस नेगी व अधिवक्ता रवींद्र विष्ट पैरवी कर रहे हैं। उम्मीद की जा रही है कि हाईकोर्ट ऐतिहासिक फैसला दे सकता है।गौरतलब है अपनी बर्खास्तगी के आदेश को बबीता भंडारी, भूपेंद्र सिंह बिष्ट , कुलदीप सिंह समेत 102 से अधिक कर्मचारी/ अधिकारियों ने चुनोती दी है। याचिकाओं में कहा गया है कि विस अध्यक्ष द्वारा लोकहित को देखते हुए उनकी सेवाएं 27, 28 ,व 29 सितम्बर 2022 को समाप्त कर दी। बर्खास्तगी आदेश मे उन्हें किस आधार पर किस कारण की वजह से हटाया गया कहीं इसका उल्लेख नही किया गया न ही उन्हें सुना गया। कर्मचारियों ने दलील दी है कि उनके द्वारा सचिवालय में नियमित कर्मचारियों की भांति कार्य किया है। एक साथ इतने कर्मचारियों को बर्खास्त करना लोकहित नही है।
नैनीताल। नैनीताल उच्च न्यायालय ने विस सचिवालय से बर्खास्त कर्मचारियों की सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी। सुनवाई न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की एकलपीठ में चल रही है। बर्खास्त कर्मचारियों को ओर से सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता देवीदत्त कामथ, पूर्व महाधिवक्ता वीवीएस नेगी व अधिवक्ता रवींद्र विष्ट पैरवी कर रहे हैं। उम्मीद की जा रही है कि हाईकोर्ट ऐतिहासिक फैसला दे सकता है।गौरतलब है अपनी बर्खास्तगी के आदेश को बबीता भंडारी, भूपेंद्र सिंह बिष्ट , कुलदीप सिंह समेत 102 से अधिक कर्मचारी/ अधिकारियों ने चुनोती दी है। याचिकाओं में कहा गया है कि विस अध्यक्ष द्वारा लोकहित को देखते हुए उनकी सेवाएं 27, 28 ,व 29 सितम्बर 2022 को समाप्त कर दी। बर्खास्तगी आदेश मे उन्हें किस आधार पर किस कारण की वजह से हटाया गया कहीं इसका उल्लेख नही किया गया न ही उन्हें सुना गया। कर्मचारियों ने दलील दी है कि उनके द्वारा सचिवालय में नियमित कर्मचारियों की भांति कार्य किया है। एक साथ इतने कर्मचारियों को बर्खास्त करना लोकहित नही है।
यह आदेश विधि विरुद्ध है। विधान सभा सचिवालय में 396 पदों पर बैक डोर नियुक्तियां 2001 से 2015 के बीच में भी हुई हैं। इनको नियमित किया जा चुका है। याचिकाओ में कहा गया है कि 2014 तक हुई तदर्थ नियुक्त कर्मचारियों को चार वर्ष से कम की सेवा में नियमित नियुक्ति दे दी गई। किन्तु उन्हें 6 वर्ष के बाद भी नियमित नहीं किया अब उन्हें हटा दिया गया। पूर्व में उनकी नियुक्ति को 2018 में जनहित याचिका दायर कर चुनौती दी गयी थी जिसमे कोर्ट ने उनके हित में आदेश देकर माना था कि उनकी नियुक्ति वैध है। याचिकाकओं में कहा गया है कि नियमानुसार छह माह की नियमित सेवा करने के बाद उन्हें नियमित किया जाना था।